शनिबार, २२ वैशाख २०८१
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शनिबार, २२ वैशाख २०८१

आज विशेष हनुमान जयन्ती, यसरी गर्नुहोस् हनुमानको आराधना

दैनिक नेपाल २०८१ वैशाख ११ गते ६:२६

काठमाडौं, ११ वैशाख । आज चैत्र शुक्ल पुर्णिमा अर्थात हनुमान जयन्ती । पञ्चाङका अनुसार पूर्णिमा तिथी काठमाडौंको समय अनुसार ११ गते बिहान ३ः४७ बजेदेखि  १२ गते बिहान ५ः४३ बजेसम्म रहेको छ अर्थात मंगलबार दिनभित्र रहेको छ ।

हनुमान जयन्तीमा, दिनको शुरुवात धार्मिक स्नानबाट सुरु गर्नुपर्छ । यसदिन भक्तहरू हनुमान मन्दिर जान्छन् वा घरमा पूजा गर्छन् । यसका लागि हनुमानजीको मूर्तिमा सिन्दूर लगाउनु राम्रो हुन्छ ।  यदि तपाईं पूजा गर्न चाहनुहुन्छ भने धूप, दीप, नैवेद्य अर्पण गर्नुहोस् र मन्त्र जप गरी हनुमानजीको पूजा गर्नु राम्रो हुन्छ । त्यसपछि हनुमान चालिसा, आरती र बजरंग बान पाठ गर्नुहोस् । यदि असहाय वा वृद्धलाई सहयोग गर्दा हनुमान खुसी हुने विश्वास छ ।

यसपटक हनुमान जयन्तीलाई विशेष मानिन्छ । वास्तवमा, हनुमान जयन्तीमा केही विशेष संयोगहरू हुन गइरहेका छन् । वास्तवमा मंगलबार हनुमान जयन्ती परेको छ । साथै यस दिन हनुमान जयन्ती चित्र नक्षत्र र वज्र योगको संयोग भएको छ । यी शुभ योगहरूमा पनि हनुमानजीको पूजा गर्न सकिन्छ ।

केही मन्त्रहरू

ॐ श्री हनुमते नमः
ॐ ऐं भ्रीं हनुमंते, श्री राम दूताय नमः
ॐ आंजनेय विद्महे वायुपुत्राय धीमहि। तन्नो हनुमन्त प्रचोदयात्

हनुमान चालिसा

दोहा :

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि।। 
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार।
बल बुद्धि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।। 

चौपाई :

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर।
जय कपीस तिहुं लोक उजागर।।

रामदूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।

महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी।।

कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा।।

हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
कांधे मूंज जनेऊ साजै।

संकर सुवन केसरीनंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन।।

विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर।।

प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया।।

सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा।।

भीम रूप धरि असुर संहारे।
रामचंद्र के काज संवारे।।

लाय सजीवन लखन जियाये।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।

रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई।।

सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं।।

सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा।।

जम कुबेर दिगपाल जहां ते।
कबि कोबिद कहि सके कहां ते।।

तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राज पद दीन्हा।।

तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेस्वर भए सब जग जाना।।

जुग सहस्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।

प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गये अचरज नाहीं।।

दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।

राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे।।

सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना।।

आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हांक तें कांपै।।

भूत पिसाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै।।

नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा।।

संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै।।

सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा।
 
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै।।

चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा।।

साधु-संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे।।

अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता।।

राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा।।

तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम-जनम के दुख बिसरावै।।

अन्तकाल रघुबर पुर जाई।
जहां जन्म हरि-भक्त कहाई।।

और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।

संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।

जै जै जै हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।

जो सत बार पाठ कर कोई।
छूटहि बंदि महा सुख होई।।

जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा।।

तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय मंह डेरा।। 

दोहा :

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।

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